रहस्यमाई चश्मा भाग - 38
अतः उन्होंने गांव के दलित समाज को ही गांव के मंदिर पुनर्निर्माण के लिए सहयोग देने का निवेदन किया श्यामाचरण जी ने बड़ी विनम्रता से पंचों के सामने गांव के दलित समाज को सम्बोधित करते हुए कहा #ईश्वर के द्वारा सृष्टि कि रचना कि जाती है वह किसी को ऊंच नीच जाति पाँति विभक्त नही करता वह तो प्राण आत्मा में स्वंय का अंश देकर शरीर प्रदान कर देता है और अपनी ही संरचना ब्रह्मांड में छोड़ देता है!
यह तो मानव समाज कही स्वयं के अहम कि संतुष्टि के लिए अपने मिथ्या अभिमान में एक दूसरे को ऊंचा नीच के वर्ग में स्वंव ही विभक्त कर लेता है ईश्वर ने तो हर शरीर को धारण किया है मत्स्य ,कक्षप ,वाराह,नरसिंह ,वामन ,परशुराम, राम ,कृष्ण ,महाबीर ,बुद्ध गुरुनानक भगवान महाबीर बुद्ध और गुरुनानक ईश्वर के कलयुग सत्य है!
तो मत्स्य कक्षप वाराह नर्सिंग वामन राम कृष्ण युगों युगों से उनकी सत्यता के शाश्वत साक्ष्य सत्य है सबसे पावन अवतार वाराह ही कहा जाय तो अतिश्योक्ति नही होगी यदि मत्स्य अवतार सृष्टि रक्षा के लिए था तो कक्षप दानवीय एव दैवी शक्तियों के संतुलन समन्वय के लिए और वाराह तो ब्रह्मांड कि रक्षा के लिए ही था क्योकी ब्रह्मांड सत्ता केंद पृथ्वी की रक्षा के लिए ही ईश्वर का वाराह अवतरण हुआ था!!
ईश्वर कि दृष्टि में प्राण प्राणि महत्वपूर्ण है कर्म महत्त्वपूर्ण है अतः पूरी गांव कि पंचायत गांव के मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी गांव के दलित समाज को सौंपती है पुजारी तीरथ राज जी ने सहमति जताते हुए गांव के दलित समाज को ही सादर निमंत्रण दे दिया गांव के मंदिर पुनर्निर्माण का जिसका गांव के सम्पूर्ण दलित समाज ने अपने लिये बहुत बड़ा सम्मान मानकर करतल ध्वनि से जिम्मेदारी का स्वागत किया दलित समाज के मुखिया आँचल ने पंचों के समक्ष गांव द्वारा दी गयी जिम्मेदारी को ससम्मान अभिमान समझकर निर्वहन करने का वचन दिया और गांव का पूरा दलित समाज क्या बच्चा क्या बूढ़ा क्या जवान युवा सब चल पड़े!
एक साथ गांव के मंदिर जीर्णोद्धार के लिये नत्थू के शातिर साम्राज्य कि शातिर चाल ध्वस्त हो धूल धुसित हो गयी औऱ मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य तेजी से होने लगा ।कहते है लालच इंसान को किसी हद तक पतनोन्मुख बना देती है नत्थू को लगा कि यदि उसके ही गांव उसका खौफ खत्म हो गया तो उसे तो आम जनता उसे पागल कि तरह दौड़ा दौड़ा कर मार डालेगी क्योकि उंसे पता था कि उसने यशोवर्धन के परिवार का ही नही गांव एव जवार में जाने कितने परिवारों को समाप्त करने में भूमिका निभाई है।
श्यामचरण जी एव गांव के सभी परिवारों को एक ही भय था जो परेशान किये जा रहा था की कही नत्थू गांव में हिन्दू मुश्लिम का फसाद ना खड़ा कर दे। लेकिन पूरा गांव मंदिर पुनर्निर्माण एव विद्यालय निर्माण में पूरे जोश खरोस के साथ जुड़ चुका था और निर्माण कार्य बहुत तेजी से चल रहा था ।नत्थू इसी फिराक में रहता की किस तरह से गांव को इस स्तर पर ही रखा जाय जिससे गांव में बहुत हलचल या गांव का विकास होने पर तरह तरह के अधिकारियों लोंगो का आना जाना शुरू होगा और गांव के लोंगो का भी सम्पर्क समाज के अन्य वर्गों एव आस पास के क्षेत्रों के साथ बढ़ेगा जिसके कारण उसका साम्राज्य तो ध्वस्त होगा और उसका अंत भी बहुत खौफनाक होगा गांव वाले नत्थू कि फितरत से भिज्ञ लेकिन बेख़ौफ़ अपना कार्य कर रहे थे और चौधरीं साहब के संकल्प पर बढ़ते जा रहे थे!
मंगलम चौधरीं जबसे श्यामाचरण झा जी एव तीरथ राज जी से मिलकर लौटे थे और उन्हें शुभा कि सच्चाई मालूम हुई थी तभी से उन्हें शुभा कि प्रथम मुलाकात एव बिछड़ने के दिन तक के प्रत्येक दृश्य जीवंत हो उनके मानस पटल पर उन पल प्रहरो को जीवंत कर देते जो मंगलम चौधरी को सोते जागते शुभा की बाते उसकी मुलाकातें उसकी भावनाओं कि स्पर्श स्प्ष्ट अनुभूति तो होती ही उनके कानो में शुभा की बाते गूंजती रहती मंगलम चौधरी से मिलने जुलने में पिता यशोवर्धन एव माँ सुलोचना कि तरफ से कोई बाधा नही थी क्योकि उनको पता था कि मंगलम उनके मिथिलांचल का ही मैथिल है और जाति का भी है साथ ही साथ उनके समक्ष बराबरी का भी उसके पिता भी कई मिलो के मॉलिक एव समम्मानित एव प्रतिष्ठित व्यवसायी है!
अतः दिनों परिवारों के रिश्ते में कोई बाधा नही थी बैठे बैठाए शुभा बिटिया के लिये योग्य रिश्ता उनकी दृष्टि में मंगलम चौधरी था मंगलम चौधरी अक्सर समय निकल कर और कारण खोज कर शेरपुर यशोवर्धन परिवार से मिलने जाते और कोई न कोई बहाना खोज कर शुभा भी उनके साथ समय निकाल लेती और माता पिता कि अनुमति मिल जाती मंगलम चौधरी को जब भी शुभा का स्मरण करते उसके साथ बिताए पलो में ऐसा खो जाते जैसे कि उन्हें किसी भी बात का ध्यान ही रहता उन्हें बहुत रहता ।
संत समाज निद्रा से शुभा के जागने की प्रतीक्षा कर रहा था वह निद्रा में जाने क्या क्या बोलती रहती संत समाज कुछ भी समझ सकने में असमर्थ था निद्रा में शुभा विराज सुयश को तो निरंतर बोलती रहती बीच बीच मे अजीबो गरीब हरकते करती जैसे एका एक बैचेनी में बड़बड़ाना मत मारो हम लोंगो ने क्या विगड़ा है कभी कभी वह बहुत जोरो से चिल्लाने लगती!
बचाओ बचाओ संकल्प भईया को कभी कहती संवर्धन भईया को कभी मॉ को कभी बाबूजी को कभी माँ को फिर बोलती बड़ी बेरहमी से मार डाला माई बाबूजी को संकल्प संवर्धन को उन्ही बेरम लांगो ने मारा जिनके लिए बाबूजी जीवन भर वो सब कुछ करते रहे जो उनकी बेहतरी के लिए आवश्यक था ।
शुभा को निद्रा में गए पूरे एक सप्ताह बीत चुके थे संत समाज सिर्फ शुभा द्वारा नीद में बड़बड़ाने से इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था कि शुभा किसी भयंकर हालात की शिकार हुई है जिसे इसने देखा है और स्वंय जिया है वनवासी आदिवासी समाज भी इसी नतीजे पर पहुंचा था लेकिन रहस्य यह था कि वह कौन सी घटना या दुर्घटना शुभा के जीवन मे घटित हुई है!
जारी है
Abhilasha Deshpande
13-Aug-2023 09:35 AM
Nice part
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